खड़ा हिमालय बता रहा है
डरो न आंधी पानी से
खड़े रहो तुम अविचल होकर
सब संकट तूफानी में !!
डिगो न अपने पथ से
तो तुम सब प् सकते हो प्यारे
तुम भी ऊँचा उठ सकते हो
छु सकते हो नभ के तारे !!
खड़ा रहा जो अपने पथ पर
लाख मुसीबत आने में
मिली सफलता जग मैं उसको
जीने में मर जाने में !!
this is a poem i have remebered since my school days(have read it in class 2) and it has inspired me all my life ..... would love to thank the poet "Sohanlal Dwivedi"
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